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सफर - मौत से मौत तक….(ep-8)

नंदू की शादी थी, और जिंदगी में पहली ही घटना ऐसी थी कि अपनी शादी का नजारा कोई दूर से ले रहा था, उस टाइम इतना बजट नही होता था कि शादी की वीडियो कैसेट्स बनाये जाए, लेकिन फिर भी नंदू अपनी शादी को शादी के बत्तीस साल बाद देख रहा था।

पंडित जी मंत्रों के उच्चारण करते हुए रीती- रिवाज को मध्यनजर रखते हुए शादी सम्पन्न कर दी.. और नंदू अपनी होने वाली पत्नी को लेकर घर आ गया,

शादी के बाद घर मे माहौल खुशी का था, हफ्ता भर नंदू ने छुट्टी कर ली काम से…. शादी में आये सारे मेहमान दूसरे तीसरे दिन ही जा चुके थे। नंदू बहुत खुश था, क्योकि जिस घर मे कल तक वो और उसके बूढ़े माता पिता थे, अब वहाँ
गौरी भी रहने लगी थी, मेहमानों के जाते ही अंदर वाला कमरा नंदू और गौरी का कमरा घोषित हो गया था। शादी के दो तीन दिन तक नंदू और गौरी अलग अलग रह रहे थे, उसका कारण था घर छोटा और मेहमान ज्यादा…. नंदू ने बड़ी मुश्किल से सभी मेहमानों को विदा किया।

शादी के बाद सब खुश थे, कौशल्या का हाथ बटाने के लिए एक बहु आ गयी थी वो इसलिए खुश थी,  चिंतामणि को भी अब चिंता नही थी कि नंदू की शादी भी करनी है, उसके लिए उसकी सारी जिम्मेदारियां पूरी हो गयी थी,  और सबसे ज्यादा खुश था नंदू..…. वो क्यो…. आइए देखते है नंदू की खुशी की वजह……….

"हाथ छोड़ो मेरा…….माँजी आ जायेगी" गौरी ने कहा , गौरी किचन में आटा गूंद रही थी, नंदू ने काम पर जाना था लेकिंन हफ्ते भर के छुट्टी के बाद आज भी नंदू का मन दिन भर घर मे रहकर छोटे मोटे कामो में हाथ बटाने का कर रहा था, उसकी आदत एक ही हफ्ते में बदल गयी थी, लेकिन काम पर जाना भी बहुत जरूरी था।

"मां नही आएगी, उनकी बहू किचन में है, वो क्यो आएंगे इधर" नंदू बोला।

"अरे…बच्चो जैसी हरकत क्यो करते हो, गिर जाएगा आटा…" गौरी ने कहा।

यमराज और नंदू अंकल ये सब देख रहे थे, यमराज तो नंदू की हरकत देखकर हँस रहा था,लेकिन नंदू उदास था,

"क्या हुआ अंकल….इतना अच्छा सीन चल रहा और आप उदास हो रहे हो, ये तो खुशी की बात है ना, तब देखो कितना खुश थे आप" यमराज ने कहा।

"अतीत की खुशी हो या दुख, दोनो रुलाती है बेटा…… अगर किसी ने अतीत में दुख देखें है तो वो उन दुखो को याद करके रोता है, और अगर कोई खुशियों भरा पल याद आ जाये तो भी वो रोता ही है, ये सोचकर कि इतने अच्छे दिन थे, अब लौटकर नही आएंगे" नंदू ने कहा

"आप सब जानते हुए भी बात बात पर इतना दुखी क्यो हो जाते हो" यमराज ने कहा।

"तो मनुष्य भी तो जानता है कि एक दिन उसने सारी धन दौलत सब जमीन में ही छोड़ के चले जाना है,लेकिन फिर भी वो हर वक्त कमाने की लालसा रखता है, उसका लोभ कभी खत्म नही होता, उसी तरह मैं जानता हूँ कि अब ये सब जो हम देख रहे है एक मिथ्या है, झूठ है, लेकिन फिर भी आंखे नम और चेहरे में उदासी तो आ ही जाती है" नंदू ने कहा।

"चलो ठीक है, लेकिन आप बचपन मे थे बहुत रोमांटिक.…." यमराज ने छोटे नंदू और गौरी की तरफ इशारा करते हुए नंदू अंकल से कहा,

नंदू अंकल ने भी उनकी तरफ गर्दन घुमाई तो नंदू ने गौरी को गले लगाया था और बोल रहा था- "बिल्कुल मन नही हौ जाने का….प्लीज मुझे रोक लो ना……"

"देखो जी। कपड़े गंदे हो जाएंगे आपके, माँजी मुझे डाँटेगी, और आज हो क्या गया है आपको….ऐसे परेशान करना किसने सिखाया आपको" गौरी ने कहा।

"इसे परेशान नही प्यार कहते है पागल….चल एक काम करूंगा शाम को आते आते सिनेमाहॉल से टिकिट लेते आऊंगा, बहुत अच्छी पिक्चर-फिल्म आने वाली है , दोनो जाकर देखेंगे," नंदू बोला।

गौरी कभी गयी नही थी फ़िल्म देखने, उसे बहुत शौक था देखने का लेकिन उसे डर था तो सास ससुर का….
"नही….नही क्या कहेंगे सब……माँजी बाबूजी ने डाँट दिया तो, मुझे तो कुछ नही आपको डांटेंगे" गौरी बोली।

"अरे कोई नही डांटेंगे, आराधना आ रही है, दोनो देखने जाएंगे" नंदू ने कहा।

"अब ये आराधना कौन है….अगर आ रही है तो उसी के साथ देख लेना" खुद को नंदू के चंगुल से छुड़ाते हुए गौरी बोली।

"अरे पागल! आराधना मेरी कोई मित्र नही है, आराधना फ़िल्म का नाम है , राजेश खन्ना साहब की, और मैं तो उनकी सारी फिल्में देखता हूँ।



गौरी भी राजेश खन्ना की दीवानी थी, उसे भी राजेश खन्ना बहुत पसंद था एक समय मे, क्योकि उस समय राजेश खन्ना के गाने और उनके डायलॉग रेडियो में बहुत बजते थे, और बाजार में उसके फिल्मो की पोस्टर भी, लेकिन कभी उसकी फ़िल्म नही देखी थी तो आज वो भी मचल उठी, उसका भी बहुत मन करने लगा कि वो सिनेमाहॉल जाए।

"मैं आना तो चाहती हूं, मगर क्या माँ बाबूजी मानेंगे" गौरी ने कहा।

"उनको मैं मना लूँगा, आप बस तैयार होकर रहना, मै शाम को जल्दी आऊंगा और फिर दोनो एक साथ चले जायेंगे" नंदू ने कहा।

"माँ बाबूजी के लिए खाना कौन पकाएगा" गौरी ने पूछा।

"शब्जी पकाकर आटा गूंद लेना, रोटी माँ बना लेंगी" नंदू ने कहा

अब गौरी भी सपना देखने लगी थी, जिंदगी में जब कुछ नया होने वाला हो तो अलग ही खुशी होती है, और एक बैचेनी होती है, समय का काटे नही कटता, और जिस पल का इंतजार हो उस पल के तक हजारों सपने देख चुकी होती है ये आंखे, गौरी का भी हाल आज कुछ ऐसा ही था। वो हरपल शाम होने का इंतजार कर रही थी, उसने दिन का खाना खाने के थोड़ी देर बाद ही शाम की शब्जिया काटनी शुरू कर दी थी। और शाम होने से पहले ही आटा भी गूंद दिया, लेकिन अभी तैयार नही हुइ थी, वैसे माँजी को बता तो दिया था उसने की नंदू जी उन्हें क्या बोलकर गए है, लेकिन बाबूजी को बताने में दोनो सास बहू हिचकिचा रहे थे, इसलिए उन्हें नंदू आकर खुद ही बताएगा।

"तुम दोनो के लिए रोटी पकाकर रख दूँगी क्या? या आकर पकाओगे….क्योकि ठंडी रोटी नंदू को पसंद नही है"  कौशल्या ने अपनी बहू गौरी से पूछा।

"मैं आकर पका लुंगी, उनका कोई भरोसा नही क्या पता वही कुछ खाने लग जाये" गौरी बोली।

गौरी बहुत खुश थी, और उसे ये भी डर था कही उसकी खुशियों को उसी की नजर ना लग जाये……गौरी के लिए एक एक पल घंटो जैसा था, समय की गति बहुत ही मंद थी।

उधर नंदू को आज दिन का पता ही नही चल पा रहा था, गौरी के घरवालो में उसे एक कलाई घड़ी शादी के दौरान गिफ्ट की थी, बस बार बार उसपर टाइम देख रहा था, और सोच रहा था की जरूर आज लेट हो जाऊंगा, दर्शल वो दो घंटे पहले दो लोगो को लेकर बस स्टेशन आया था, उनमें से एक नए तो मुरादाबाद जाना था और एक को नंदू में वापस घर तक ले जाना था, अब एक घंटे से बाहर उसी वापस आने वाले का इंतजार कर रहा था। अभी उन्होंने पैसे भी नही दिए थे, नंदू सोच रहा था पैसे दे दिए होते तो अभी भाग निकलता, अब एक तरफ उसे पहले से बहुत देर कर चुकी थी, ऊपर से उसे वापस घर भी छोड़ना था, और उससे पैसे भी लेने थे। और वो बेशर्म दस मिनट बोलकर एक घंटे तक बाहर ही नही आया, और ना ही मुरादाबाद वाली बस अभी निकली थी। एक मन था कि रिक्शा बाहर छोड़कर अंदर जाकर घर से स्टेशन तक का पैसे लेकर चले जाउँ, भले पंद्रह रुपये का नुकसान क्यो ना हो जाये, क्योकि पूरे तीस रुपये में उसकी रिक्शे को बुक किया था,

नंदू कभी रिक्शे में बैठता, कभी उसी रिक्शे के इर्द गिर्द घूमता फिरु वापस घड़ी की तरफ देखता, इसी दौरान नंदू को पता चला कि जब ये बड़ी वाली तेज भागने वाली सुई पांच चक्कर लगाती है तो उससे थोड़ी से छोटी सुई एक से दो में चली जाती है, फिर नंदू ने सबसे बड़ी सुई के कदम गिने, वो भी पचास साठ कदम में वापस वही आ जा रही थी जहाँ से चली थी। आज तक नंदू को टाइम देखना बस इतना ही आता था उस घड़ी में कई सबसे छोटी सुई जहाँ है उतने बजे है, फिर नंदू ये भी सोचता था कि अगर समय सिर्फ वो बताती है तो ये बाकी के दो सुई होते क्यो होंगे। लेकिन आज उसे इन सुइयों का काम समझ में आ रहा था, उसे बहुत ही खुशी हुई, उसे लगा कि वो भी वैज्ञानिक की तरह सोच सकता है, उसने अपने आप मे बहुत बड़ी खोज सी कर दी थी, बहुत देर तक घड़ी को घूरने के बाद उसे फिर याद आया कि उसने गौरी से वादा किया था कि आज उसे फ़िल्म दिखायेगा, लेकिन फ़िल्म तो शुरू भी हो गयी होगी, और वो जनाब स्टेशन के अंदर ही चिपक गए,
  फिर ख्याल आया कि कही वो दोनो कोई ठग तो नही थे, भाग तो नही गए। फिर खुद के सवाल
"नही नही, अगर वो चले जाते तो मुरादाबाद वाली बस में ही जाते, अभी बस निकली नही, शायद वो गए ही नही, बस देर से जाएगी इसलिये वो वापस नही आया"

उधर दूसरी तरफ नंदू का राह तकती गौरी बहुत मायूस हो गयी थी। जिसका इंतजार वो सुबह से कर रही थी, जिसने जल्दी आने का दिलासा दिलाया था, वो अभी तक नही आया था।

कौशल्या भी परेशान हो गयी आज तो, आज तो और दिन से भी देर हो चुकी थी, रोज के आने का समय भी हो चुका था, दिन पूरी तरह ढल चुका था और चारो तरफ धीरे धीरे अंधेरा होने लगा था। लेकिन नंदू अभी तक घर नही लौटा।

"नंदू इस टाइम पर तो पहले भी आ ही जाता था, मगर ना जाने क्यो आज उसे आने में इतनी देर हो रही है" कौशल्या में गौरी से कहा।

"क्या पहले वो इस टाइम पर आ जाते थे?" गौरी ने दोबारा वही सवाल किया जिसका जवाब बिना पूछे कौशल्या दे चुकी थी।

"हां….हमेशा तो नही लेकिन आमतौर पर इस वक्त आ ही जाता था वो….कभी थोड़ा जल्दी भी, इतनी देर तो आज ही हुई" कौशल्या ने कहा।

कौशल्या की बात से गौरी का दिल घबराने लगा, वो दिन भर की खुशी, सपने और इंतजार सब धूमिल हो चुकी थी, अब बची थी तो चिंताएं और अंदर ही अंदर एक डर और घबराहट, गौरी सोचने लगी - "बस आप घर आ जाओ, मुझे कोई पिक्चर नही देखनी, हे भगवान! उनकी रक्षा करना….उन्हें सही सलामत घर भेज दो"

नंदू अंकल ये सब देख रहा था, उसे बहुत अजीब लग रहा था, उसने दिन भर गौरी के आंखों में एक अलग तरह की खुशी देखी थी, कुछ सपने देखे थे, एक नई चाहत देखी थी, और अपने लिए ढेर सारा प्यार और दुआएं भी देखी थी, लेकिन अब गौरी के सारे सपने बिखर चुके थे बस एक नया सपना उनमें पलने लगा था कि बस नंदू सही सलामत घर आ जाये।

कहानी जारी है


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2 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:22 PM

Nice

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🤫

08-Sep-2021 10:06 PM

इंट्रेस्टिंग.. कहानी सोनू जी...!

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